ग़रीब हूँ साहब !
ये सूरज और ये चाँद,
सभी के लिए एक समान हैं,
जैसे सूरज की रोशनी,
दिन की मेहमान है,
वैसे ही चाँद की चाँदनी,
रातों की मेज़बान है,
जितनी तेरे लिए ये ज़रूरी हैं,
उतनी ही मुझपे भी मेहरबान हैं,
हम सभी के ऊपर,
एक जैसा,
एक बराबर,
वो विशाल आसमान है,
ये तेरी और मेरी,
जात के मतभेद से,
पूर्ण रूप से अनजान है,
तेरा अन्नदाता भी वही रब है,
जो मेरे लिए मेरा भगवान है,
तू जिस मिट्टी का पुतला है,
उसी मिट्टी के बने हम भी इंसान हैं,
लेकिन फिर भी,
ना जाने क्यूँ....
मैं हूँ ग़रीब,
और तू धनवान है !
आज तुझसे ज़्यादा अख़बारों में,
मेरे ही चर्चे और कहानियाँ हैं,
तू मुझे रोज़ देखता है,
मेरे चेहरे हज़ार हैं,
तू सुबह अपने भोजन को,
पचाने के लिए दौड़ता है,
यहाँ दो दिनों से बिना कुछ खाए,
मेरे बच्चे बीमार हैं ,
तू इमारतों में बैठ कर,
बरसात का मज़ा लेता है,
यहाँ मेरा परिवार, हर मौसम,
बिना छत के, सड़कों पे सवार हैं !!
तू विमान और जहाज़ों में,
सफ़र करता है, और,
मेरी जेब में मात्र पैसे चार हैं,
बड़ी बड़ी गाड़ियों में बैठ के भी,
तू प्रदूषण से हैरान है,
मेरे लिए ये मिट्टी, खेत और खलिहान,
यही मेरा जहान हैं !!
तेरे पुराने कपड़े और फटे जूते,
तू अक्सर उसे फेंक देता है,
लेकिन मेरे और मेरे बच्चों के लिए,
वही ख़ुशी और वही इनाम हैं !
मेरे मरने की खबरें हर दिन,
गिनतीयों में आती हैं,
लेकिन तेरे मरने पे,
तेरा हर जगह नाम है !!!
मैं ग़रीब हूँ साहब,
मेरे छोटे छोटे अरमान हैं,
होंगी शायद तेरी ख्वाहिशें,
चाँद पे जाने की,
लेकिन आज भी मेरी ज़रूरतें,
बस रोटी, कपड़ा और मकान हैं,
हाँ.. बस रोटी, कपड़ा और मकान हैं !!!!!! 😔😣😢
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