सवालों के जवाब !


तुमने ठहरे हुए पानी को देखा है कभी ?
अगर पूछो कि वो ठहरा क्यों है ?
एक ही सतह पे इतने समय से थमा क्यों है ?

बताओ ?

तुमने उड़ती पतंगों  को देखा है कभी ?
अगर पूछो कि ऊँचाई से उन्हें डर नहीं लगता ?
इतना  ऊँचा उठकर भी उनका घमंड नहीं बढ़ता ?

बोलो ?

तुमने पहाड़ों से गिरते झरनों को देखा है कभी ?
अगर पूछो कि गिरने से उन्हें चोट नहीं लगती ?
क्या फिर से उठने के लिए सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती ?

यूँ ही ,
इसी तरह,
सवाल हज़ारों हैं,
लेकिन बिना जवाब के!

जैसे, तुम्हारा मेरी ज़िंदगी में आना, 

किसी रेगिस्तान में गुलाब के खिलने जैसा था,
तितली और फूल के मिलने जैसा था,
किसी आँगन में लगी तुलसी जैसा था,

डोर से बंधी उस पतंग जैसा था,
जिसको ये भरोसा होता है की,
आसमान में चाहे कितना भी दूर रहूँ,
हवा में चाहे जितना डगमगाऊँ,
उसको ये डोर सम्भाल लेगी,

तुम्हारा सिर्फ़ होना ही मेरे लिए, 
सब कुछ था...

हाँ ,
हैरान था मैं,
और अनजान भी,
तुम्हारा जाना मेरे लिए,
ऐसे ही किसी सवाल के जैसा था,
जिसका कोई जवाब नहीं !

तुम जानती थीं कि तुम पसंद हो मेरी,
तुम्हें चाहता हूँ मैं,
लेकिन फिर भी,
‘अक्सर पूछती थीं, - “कितना ??”

कितना ? !!
आज भी मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं,
जो मैं तुम्हें शब्दों में बतला सकूँ !

यूँ ही ,
हाँ बस यूँ ही,
सवाल हज़ारों हैं,
लेकिन कुछ सवालों के जवाब नहीं हुआ करते,
बस उन्हें महसूस किया जाता है !!

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