समंदर है अंदर !


एक समंदर है अंदर,
उम्मीदों का, विश्वास का,
अल्फ़ाज़ों का, एहसास का,

ज़िद्दी है बहुत, सुनता नहीं है,
बढ़ता ही रहता है, रुकता नहीं है,

सहता है सब कुछ, कहता नहीं है, 
रहता है गुम कहीं, लेकिन खोता नहीं है,

होगा एक तेरे अंदर भी, 
झांक,
टटोल,
और तलाश कर,
उसे पुकार आज,
चाहता है क्या, ये तू जान आज,

एक समंदर है अंदर,
उम्मीदों का, विश्वास का,
अल्फ़ाज़ों का, एहसास का !

बिन आवाज़ ही टूट जाता है,
नाज़ुक है, पर काँच नहीं है,

एक ध्वनि है उसकी,
थिरकता है, 
मचलता है,
ये मंथन है उसका, कोई नाच नहीं है,

बहता है इधर उधर, 
अटकता नहीं है 
लम्बा है सफ़र ये जानता है,
थकता है, रुकता है ,लेकिन भटकता नहीं है,

होगा एक तेरे अंदर भी, 
झांक,
टटोल,
और तलाश कर,
उसे पुकार आज,
चाहता है क्या, ये तू जान आज,

एक समंदर है अंदर,
उम्मीदों का, विश्वास का 
अल्फ़ाज़ों का, एहसास का !

एक आस है उसकी,
है जो आज भी अधूरी, 

इच्छाएँ ही है, कोई प्यास नहीं है,
यूँ ही ख़ामोश हैं, हताश नहीं है,

वो भी चाहता है, 
कि तुझे हासिल हो सब,
लेकिन चाहता है ये भी , 
कि जब तू उसके काबिल हो तब, 

वो कुछ बोल नहीं पाता,
हाँ, गुम सुम ज़रूर है, मगर निराश नहीं है, 

समझ सकता है केवल तू ही उसको,
ये जानता है तू, लेकिन तू सुनता नहीं है, 

इस भीड़ में खो गया  ‘ऐ मानुष’ तू कहाँ,

मन है बेचैन अगर तो सम्भाल उसको, 
तेरा अपना ही है, क्या तुझे आभास नहीं है ?

होगा एक तेरे अंदर भी, 
झांक,
टटोल,
तलाश कर,
उसे पुकार आज,
चाहता है क्या, ये तू जान आज,

एक समंदर है अंदर,
उम्मीदों का, विश्वास का 
अल्फ़ाज़ों का, एहसास का !!

********************

Popular posts from this blog

Everything will be fine!

One More Time